अमृतसर (अंबरसर)
समृद्ध इतिहास, संस्कृति और परंपराओं में लिपटा अमृतसर दुनिया भर के सिक्खों के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है जो खुले दिल से यहाँ आने वालों का स्वागत करता है। जिस क्षण आप अमृतसर की छोटी छोटी गलियों में कदम रखते हैं,खाना पकने की सुगंध और भक्ति संगीत के ताने-बाने से खुद को जीवंत महसूस करते हैं।ये छोटा सा शहर पूरे पँजाब की सांस्कृतिक आध्यात्मिक और स्वाद की विरासत को अपने कंधों पर संभाले हुए है। पारंपरिक पंजाबी पहनावे को संभाले हुए है यहाँ की छोटी छोटी तंग गलियां और उन गलियों में सिलाई,कढ़ाई का काम करते सैंकड़ो कारीगर।दुनिया भर में शौंक से पहने जाने वाले भारी कढ़ाई और फुलकारी वाले पंजाबी सूट इन छोटे छोटे कारीगरों के हाथों से निकलकर हम तक पहुँचते हैं। बहुत सुकून मिला देखकर कि कहीं आज भी मानव श्रम व तुजुर्बे की कदर मशीनों से ज़्यादा है। लाहौर जाकर तो नही देखा पर अमृतसर की पुरानी गलियों में लाहौर नजर आता है।
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अमृतसर का अध्यात्म समेटे हुए है स्वर्ण मंदिर जहाँ कदम रखते ही एक अलग से सुकून का एहसास होता है।मन कितना भी विचलित हो शांत वातावरण में गुरुबाणी की स्वरलहरियों से पल में प्रसन्न हो जाता है।गुरुद्वारे में प्रवेश करने से पहले सिर ढकना आवश्यक है जिसके लिये वहाँ शुरुआत में ही ढेरों कपड़े रखे रहते हैं।दरबार साहिब मे सीढ़ियों से नीचे उतरकर जाना पड़ता है,चारों प्रवेश द्वारों पर फर्श के बीच में छोटे छोटे पानी के नाले बने हुए हैं श्रद्धालु जिनमें से होकर गुजरते है,मतलब बिना प्रयास के ही पैर धुल जाते हैं।भगवान या गुरु के पास जाने के लिए किसी बाहरी शुद्धता की आवश्यकता नहीं होती केवल मन का साफ होना महत्व रखता है पर ये सब नियम प्रतीकात्मक हैं सीढियां उतरकर आने का मतलब है अपने घमंड को छोड़ देना और पैर धोने का अर्थ है गुरु के पास जाने से पहले जो भी द्वेष,ईर्ष्या जो भी बुराई आपके मन मे है उसे वहीं उस पानी के नाले में छोड़कर साफ मन से आगे बढ़ना।चारों द्वार सभी धर्मों के लोगों के लिये खुले हैं।गुरु भक्तों जैसी सेवा भावना और कहीं देखने को नही मिलती कोई चोरी ठगी नही,कोई लूट नही आपके चप्पल जूतों को सेवादार आगे बढ़कर दोनों हाथों में पकड़ते हैं वापसी में वे साफ सुथरे चमके हुए मिलते हैं।इस दर पर कोई वी आई पी लाइन नही है कोई कितना ही अमीर या प्रसिद्ध हो यहाँ आने वाले हर सेलेब्रिटी को लाइन में लगना पड़ता है। पर इंसानियत की जगह यहाँ जरूर है जो बिना कहे किसी की तकलीफ पढ़ लेते हैं इस यात्रा में मेरे साथ मेरी मम्मी भी थे और आस पास बहुत से लोग जिन्हें उनकी शारीरिक अवस्था के कारण ज्यादा देर खड़े रहने में तकलीफ हो रही थी,उन्हें मेरे बिना कहे ही सेवादार दर्शन करवाने अपने साथ ले गए लाइन में से खुद ही ढूंढ़ रहे थे कि कोई ज्यादा देर खड़े रहने से लाचार न हो।वैसे तो गुरु घर में सुबह या शाम कभी भी जा सकते हैं पर रात के समय असंख्य बल्बों की झिलमिलाती रोशनी जब सरोवर में पड़ती है उस दृश्य को देखना बहुत अच्छा लगता है।दरबार साहिब(हरमंदिर साहिब या स्वर्ण मंदिर) की यात्रा अपने आप मे एक दिव्य अनुभव है।
अंबरसर की बात हो और खाने का ज़िक्र ना हो ऐसा हो ही नही सकता।अपने प्रसिध्द खाने की वजह से इसे पंजाब की फ़ूड कैपिटल कहा जाता है।बहुत कम सुविधाओं वाली छोटी छोटी तंग गलियों की दुकानों में मिलने वाला ऐसा स्वाद जिसकी तुलना किसी पांच सितारा होटल से भी नही की जा सकती।आज खाने के क्षेत्र में ऊंचाईयों तक पहुंचने वाले विकास खन्ना जैसे शेफ भी अंबरसर की देन हैं,जिन्होंने बचपन मे लंगर में सेवा करते करते खाना बनाना सीखा और इस स्वाद को पूरे देश से परिचित करवाया वो आज विदेशों में भी लंगर की पंरपरा को जीवित रखे हुए हैं।वैसे तो वहाँ खाने के लिये इतना कुछ है कि लिखते लिखते शब्द कम पड़ जाएं पर फिर भी कुछ चीजें शॉर्टलिस्टेड हैं जो वहाँ एक या दो दिन के लिये जाने पर चखी जा सकती हैं।और उन सब चीजों के स्वाद का टॉप सीक्रेट वहाँ का पानी,विज्ञान कहता है कि पानी का कोई स्वाद नही होता पर पानी वो तत्व है जो किसी भी खाने का स्वाद निर्धारित करता है।पहले ये बात सिर्फ अम्बरसर में ढ़ाबे चलाने वाले बुजुर्गों से सुनी थी जो किसी भी जगह दुकान खरीदने से पहले वहां का पानी पीकर देखते थे क्योंकि पानी मे जायका होगा तभी उससे बनने वाला भोजन स्वादिष्ट होगा। वर्तमान में हमारे बुजुर्गों के इस ज्ञान को वाइन बनाने वाली बड़ी बड़ी कम्पनियों ने भी स्वीकार किया है,उनका मानना है उनकी वाइन का टेस्ट मैन्युफैक्चरिंग में प्रयोग होने वाले पानी के टेस्ट पर निर्भर करता है।स्वर्ण मंदिर के सरोवर के पानी के तो हम हमेशा से ही अमृत कहते हैं पर पूरे अमृतसर का पानी भी कोई अमृत से कम नही है।और उसी पानी से बनते हैं ये सब भोजन
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गुरु का लंगर
गुरु का लंगर एक ऐसा भोजन है जो स्वर्ण मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को दिया जाता है। यहां दुनिया का सबसे बड़ा किचन है।जो हर दिन लगभग 1,50,000 लोगों को भोजन (दाल, सब्जी, रोटी और खीर) परोसता है।लंगर की पंरपरा गुरु नानक देव जी ने शुरू की जहाँ न कोई बड़ा न छोटा सब एक साथ एक पंक्ति में जमीन बैठकर भोजन करते हैं।और ये किसी प्रोफ़ेशनल शेफ द्वारा नही सेवा भावना रखने वाले श्रद्धालुओं द्वारा बनाया जाता है।लंगर के स्वाद उसके मसालों से नही सेवा की भावना से जुड़ा है।
अमृतसरी कुल्चा
अमृतसर का खास कुल्चा अमृतसरी कुल्चा कहलाता हैं। मैदे को दही के साथ मल कर खमीर उठाया जाता है। उसके बाद उसमें उबले मसालेदार आलू, कटी प्याज औऱ फूलगोभी आदि भर कर भरवां कुल्चे बनाये जाते हैं। इन्हें सुनहरे रंग का होने तक तंदूर में पकाया जाता है। उसके बाद इसके ऊपर मक्खन लगा कर छोले,कटे हुए प्याज और चटनी के साथ परोसा जाता हैं।और कुल्चे के साथ लस्सी का कॉम्बिनेशन पूरा दिन बना देता है।यहाँ की फेमस कुल्चे की दुकानों पर पर्यटकों से भरे टैम्पो अनलोडिंग करते दिखते रहते हैं।मैंने रणजीत अवेन्यू स्थित कुलचा लैंड, भाई कुलवंत सिंह कुल्चे वाले और एक मेरे होटल के सामने की ही एक छोटी सी दुकान के कुल्चे ट्राई किये उनमें से किसी एक को बेस्ट कहना मुश्किल है किसी की स्टफिंग लाजवाब थी तो किसी के छोले की ग्रेवी एकदम शानदार।अमृतसर में जितने भी दिन रुकना हो हर दिन एक नई दुकान के कुल्चे ट्राय करना तो बनता है।अगर स्वर्ण मंदिर के आस पास ही रहना चाहते है तो भाई कुँलवन्त सिंह कुल्चे वाले यदि दूर जा सकते हैं तो रणजीत अवेन्यू स्थित कुल्चा लैंड बेस्ट ऑप्शन है।
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पंजाबी थाली
एक दम ऑथेंटिक पंजाबी थाली मक्की की रोटी और सरसों का साग की थाली या लच्छा परांठा चना मसाला,पालक पनीर और काली उड़द की दाल वाली थाली इन दोनों में से किसी भी थाली को अकेले खत्म करना बहुत मुश्किल है।इसे किसी के साथ शेयर तो करना ही पड़ेगा।इसके लिये बेस्ट ऑप्शन है पेसीयन चौन्क स्थित केसर दा ढाबा 1916 से चला आ रहा लाहौर का ये ढाबा जो विभाजन के बाद अमृतसर आ गया।इसकी सबसे अच्छी बात इसका ओपन किचन है,जिसमें देसी घी में ताजा खाना बनते हुए अपनी आंखो से देख सकते हैं।हर बार दाल को फ्रेश तड़का लगाकर परोसा जाता है इतनी पारदर्शिता 5 स्टार होटल तक नही कर पाते।यहाँ की स्पेशल डिश है काली उड़द की दाल जो हांडी में घंटो तक पकाकर बनाई जाती है।बस एक ही नुकसान है यहाँ, खाने का स्वाद जुबान पर ऐसा चढ़ता है कि आगे आने वाले कुछ दिनों तक घर का खाना अच्छा लगना बन्द हो जाता है।
लस्सी
देसी घी से भरे भारी भरकम खाने के साथ उसको पचाने का बेस्ट कॉम्बिनेशन है लस्सी,बड़े से स्टील के गिलास में मिलने वाली मलाइ से लबालब भरी हुई लस्सी जिसे पीने के बाद चेहरे पर मूंछे बनना जरूरी है।और उसके लिये बेस्ट जगह है आहूजा लस्सी जो हिंदू कॉलेज और दुर्गियाना मंदिर के पास स्थित है अम्बरसर का हर ऑटोवाला जानता है कि यहां कैसे पहुंचा जाए इसके खास स्वाद का राज एक खास इंग्रेडिएंट् है जिसका पता आज तक कॉम्पेटिट्र्स नही लगा पाए हैं ये विरासत इसी दुकान के मालिक पीढी डर पीढ़ी संभाले हुए हैं।
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स्पेशल चाय
अदरक,इलायची वाली चाय तो सुनी ही होगी, पर यहाँ मिलती है केसर पिस्ते बादाम वाली चाय क्रिस्टल चौक स्थित 70 साल पुरानी चाय की दुकान ज्ञानी टी स्टॉल जहाँ सुबह 6 बजे से चाय के शौकीन लोगों की लाइन लगनी शुरू हो जाती है। बड़े नेताओं से लेकर सेलेब्रिटीज़ तक यहाँ चाय पीने आते हैं इतना फेमस होने के बाद भी यह की हर दुकान ने इंटीरियर डेवेलप करने की बजाय क्वालिटी पर फोकस किया है ज्यादा भीड़ होने पर इन दुकानों पर अपनी बारी के लिए इंतजार करना पड़ सकता है ये चाय की दुकान भी पहले पाकिस्तान यूनिवर्सिटी में स्थित थी जो विभाजन के बाद अम्बरसर आ गयी।
गुरदास राम की जलेबी
कोई भी भोजन बिना मिठाई के पूरा नहीं होता औऱ खासकर पंजाब की मिठाइयों में आपको घी के बिना कुछ भी नहीं मिलेगा। अमृतसर में गुरदास राम की देसी घी में बनी हुई गर्म, स्वादिष्ट और कुरकुरी जलेबियाँ सबसे अच्छी हैं। यहाँ तक कि इन जलेबियों के चलते ये दुकान जहाँ स्थित है उस जगह का नाम भी जलेबी चौंक पड़ गया है।
कुल्फ़ा
आप सब ने कुल्फी तो बहुत देखी खाई होगी पर यहाँ मिलता है कुल्फी का फूफा कुल्फ़ा जैसे रूठे फूफा को मनाने में में पूरा परिवार लग जाता है इसे तैयार करने में भी बहुत सारे इंग्रेडिएंट्स लगते हैं,इस मलाईदार मिठाई को बनाना अपने आप में एक कला है।सबसे पहले फ़िरनी की एक परत फिर मलाई से बनी कुल्फी की एक परत होती है, और कुल्फी की इस परत पर, ड्राई फ्रूट्स से भरी रबड़ी और अंत में क्रश की हुई बर्फ से इसे सजाया जाता है। फिरनी रबड़ी कुल्फी की मिली जुली कोशिश इसे कुल्फा बनाती है।इसका टेस्ट सभी दुकानों पर लगभग एक जैसा ही है।
पिन्नी
पिन्नी का नाम लेते ही नानी की याद आ जाती है,पिन्नी पंजाब की प्रसिद्ध मिठाई है जिसे को स्वर्ण मंदिर में ’प्रसाद’ के रूप में भी चढ़ाया जाता है। इसे गेहूं के आटे या उड़द की दाल से ढेर सारा घी और ड्राई फ्रूट्स डालकर बनाया जाता है, बाकी सब तो वहीं जाकर खाना जरूरी है पर पिन्नी को आप पैक करवा कर अपने परिवार और दोस्तों के लिए ले जा सकते हैं।और पिन्नी और साथ मे छोले पूरी खाने की बेस्ट जगह है डी ए वी कॉलेज के सामने स्थित कान्हा स्वीट्स
पापड़और वड़ियाँ
उनके बारे में तो कुछ लिखने की ज़रूरत ही नही पंजाबी गानों और बोलियों ने अंबरसर के पापड़ और वड़ियों को पर्याप्त मशहूर कर दिया है।
एक सुझाव स्वर्ण मंदिर के आस पास, हेरिटेज स्ट्रीट में मेन पार्किंग तक फोर व्हीलर्स अलाउड नही हैं और उसके बाहर भी गलियों में गाड़ी से घूमना इतना आरामदायक नही है,कभी अम्बरसर जाएं तो अपनी गाड़ी रखें पार्किंग में और वहाँ की अनोखी विरासत और स्वाद का आनंद लेने के लिये रिक्शा को चुनें।
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