in

LoveLove

मेरी केदारनाथ यात्रा

हरहर महादेव 🙏🌹

पिछले वर्ष से ही मन मे था कि महादेव की ईच्छा होगी तो केदारनाथ बाबा के दरबार मे अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करवाऊंगा। लेकिन मार्च से ही कोरोना प्रकोप के चलते मामला खटाई मे पड़ता गया और लगने लगा कि अब बाबा के आंगन मे पहुचने के लिएअभी और इंतजार करना पडेगा, लेकिन मन मे दर्शन की अभिलाषा बनी हुई थी, शायद मेरे महादेव की भी ईच्छा थी कि मैं उनके आंगन तक पहुंच जाऊँ।जैसे ही उत्तराखंड सरकार ने कुछ ढिलाई बरती, अपन यात्रा का जाल बुनने शुरू कर दिये, लेकिन ट्रेन चल नही रही थी, इसलिए उत्तराखंड तक पहुचना ही टेढी खीर थी, साथ चलने के लिए बहुत लोग तैयार थे, पर फिर भी कार्यक्रम तय नही हो पा रहा था,कारण वही यातायात के साधन। मेरे यहाँ से हरिद्वार ही लगभग 750 किलोमीटर दूर है। फिर भी मन बना लिया कि शाहगंज से ट्रेन से दिल्ली और फिर ट्रेन बदलकर ही दिल्ली से हरिद्वार पहुचेंगे, तारीख भी 6 अक्टूबर तय हो गई। यह बात जब अंकुर द्विवेदी जी को पता चली तो वह भी तैयार हो गए और अपनी कार से ही चलने का प्लान बना लिए।इस तरह एक कार मे चार योद्धा मै, राम गुलाब, अंकुर और अनिल उत्तराखंड मे जाने को तैयार थे।

रविवार 27 सितम्बर को जब हमसब इकठ्ठे हुए तो प्लान बन गया कि इसी बुधवार अर्थात 30 सितबंर को चलना है।

अब समस्या वही कि ई पास लिया जाये और केदारनाथ तथा बद्रीनाथ के दर्शन के लिए आनलाइन रजिस्ट्रेशन किया जाये। जिसमें कुछ उत्तराखंडी मित्रों ने भरपूर सहयोग किया, जिनका हृदय से आभार रहेगा। उदय झा,त्रिलोक राज,पंकज जी,नीरज जाट आदि, लेकिन विपिन रावत जी का विशेष आभार रहेगा।तो आनन फानन सोमवार और मंगलवार को हमसब मिलकर ईपास और दर्शन के लिए रजिस्ट्रेशन करा लिए। हमारा ईपास 30 सितंबर से 7 अक्टूबर तक का था, अर्थात एक सप्ताह उत्तराखंड मे धूनी रमा सकते थे हमसब।

Read Also : अमृतसर: संस्कृति,स्वाद व अध्यात्म का संगम

30-09-2020

सबकुछ तय हो जाने के बाद हमसब 30 सितबंर की सुबह 6 बजे बजरंगबली का नाम लेकर निकल पड़े। पहली बार हरिद्वार जा रहे थे, इसलिए रास्ता किसी को पता नही था, फिर भी हमसब लखनऊ से यमुना एक्सप्रेस वे से आगरा, नोएडा होते हुए जाने का निर्णय कर लिए, जिससे दूरी करीब 300 किलोमीटर बढ़ गई, लेकिन समय लगभग बराबर ही लगा। तो सुबह हम लोग निकल पडे। सुलतानपुर पहुंच कर कार की टंकी फुल कराई गई और फिर नानस्टाप चलना शुरू किए।लखनऊ पहुंच कर हमसब आगरा एक्सप्रेस वे पर पहुंच गए। पहले टोल पर जब 590 रूपये का टोल लगा तो समझ मे आ गया कि गलती हो गई, लेकिन अब क्या अब तो चलना ही था। 6 लेन की सडक, तीन-तीन लेन मे विभाजित और ऊपर से बिल्कुल खाली। फिर तो कार अपने मर्जी से चलने लगी। 1 बजे हमसब आगरा को पार गए। फिर एक पेड़ की छाया देखकर रूक गए और घर से लाये गए खाने को निपटाया गया। उसके बाद नोएडा पहुंच कर जूस पिया गया। थोड़ा सा रूककर फिर चल पड़े और गाडी दिल्ली के बगल से होते हुए उत्तराखंड मे प्रवेश किया, जहाँ चेकिंग चल रही थी, यहाँ हमारा ईपास चेक किया गया, फिर हम आगे बढ़े, शाम करीब 8 बजे हरिद्वार पहुंच गए। अब रूकने का मन था तो अंकुर दूबे ने कहा कि ऋषिकेश मे रूकते हैं,फिर क्या हमसब लगभग 9.30 बजे ऋषिकेश मे थे। हरप्रीत सिंह जी के गेस्टहाउस मे एक कमरे मे रूक गए। जिसका किराया 700 रूपये था। वहाँ भी घर की पूरी सब्जी को निपटाया गया।सोने से पहले तय हुआ कि सुबह ब्रश करके चलेंगे और देवप्रयाग मे  स्नान किया जायेगा।

01-10-2020

सुबह जल्दी ही हमसब उठ गये,मै और अनिल उठकर गंगा जी के किनारे घूमने लगे, थोड़ी देर बाद आये तो सब जाग गए थे। लगभग 6.30 तक हमसब फिर कार मे थे। अब हम देवप्रयाग वाले मार्ग पर आगे बढ़ने लगे, लेकिन ऋषिकेश से निकलते ही हमें पुलिस वालों ने रोक लिया, फिर ईपास चेक किए और हमें भद्रकाली पुलिस चौकी की तरफ भेज दिया,क्योंकि ऋषिकेश से श्रीनगर तक का रास्ता बंद था।फिर भद्रकाली चौकी पुनः ईपास चेक हुए, और हमें राजेंद्रनगर, चम्बा, टिहरी होते हुए श्रीनगर जाने के लिए कहा गया। हम चलते गए। मनमोहक पहाड़ और नजारे ने मंत्रमुग्ध कर रखा था।पहले नरेंद्र नगर, फिर चम्बा और टिहरी झील तथा बांध करीब 12 बजे तक पार गए। टिहरी बांध के बाद एक मोड़ पर एक दुकान पर रूका गया।यहाँ नाश्ता और भोजन की भी व्यवस्था थी, लेकिन हमसब सिर्फ चाय पिये।

Also Read : Udaipur – The city of lakes

करीब 1.30 पर श्रीनगर पहुंच गए, यहाँ काफी भीडभाड़ थी। श्रीनगर, उत्तराखंड का भी एक प्रसिद्ध शहर है और बडा भी है। श्रीनगर पार करते ही अलकनंदा के किनारे सडक पर मलवा गिर गया था, जिसकी सफाई चल रही थी, इसलिए यातायात रूका था।हमने भी अपनी कार किनारे रोकी और अलकनंदा के तट पर एक छोटे से ढ़ाबा पर कुछ खाने के लिए गए, इस ढाबे पर आलूपराठा और दाल चावल सब्जी के साथ मिल रहा था। यहाँ 30 रूपये मे पराठे और 40 रूपये मे भरपेट दाल चावल सब्जी मिल गई, जिसे अलकनंदा के किनारे बैठ कर निपटाया गया। यहाँ अलकनंदा बहुत चौडाई मे और बहुत जल के साथ बह रही थी। अलकनंदा का ऐसा नजारा मैंने पूरे यात्रा मे और कहीं नही देखा था। जबतक हमसब ने भोजन किया, तबतक यातायात चलने लगा था। हम भी चल पड़े,मुश्किल से 20 मिनट चले थे कि फिर एक चेकपोस्ट आ गया। यहाँ फिर से ईपास और रजिस्ट्रेशन चेक हुए तथा साथ ही साथ थर्मल स्क्रीनिंग भी हुई। इसके बाद चलते हुए हमसब रूद्रप्रयाग पहुंच गए, बाईपास से होते हुए हम केदारनाथ तथा बद्रीनाथ की सडकें,जहाँ से अलग होती हैं, वहाँ पहुंच गए। फिर हम सब केदारनाथ अर्थात अगस्तमुनि की ओर मुड़ गए। अब हमसब NH 107 पर अलकनंदा को छोडकर, मंदाकिनी के किनारे से चलने लगे। थोड़ा सा ही आगे बढ़े थे कि फिर चेकपोस्ट आ गया, यहाँ भी वही सब हुआ। इसप्रकार पांच बार हम चेक किए जा चुके थे। एक पुलिस वाले से मैंने पूछा भी, तो उसने बताया कि छूट का आज पहला दिन है, इसलिए चेकिंग ज्यादा है। फिर अगस्तमुनि पहुंच कर कार मे पेट्रोल फुल कराया गया,और कुण्ड होते हुए गुप्तकाशी पहुंच गए। सडकें जगह जगह खुदी पड़ी थी, चारधाम योजना का कार्य चल रहा है, इसलिए पहाड़ भी तोड़े जा रहे हैं। जिसके मलवे सडक पर आ जाने के कारण यातायात रूक जाता है, जब साफ होता है मलवा तब फिर चालू हो जाता है। रास्तों की खूबसूरती ऐसी कि मेरे पास शब्द नही वर्णन के, पहाड़, जंगल, झरनों को निहारते हुए अजीब आनंद आ रहा था। ऐसा करते हुए, हमसब करीब 6 बजे सोनप्रयाग पहुंच गए। यहाँ पर कार को पार्किंग मे खडा किया गया, जिसका 120 रूपये लिया, साथ ही बताया कि हर अतरिक्त दिन का 100 रूपये लगेंगे। फिलहाल हमसब गाडी मे से जरूरी कपडे और सामान लेकर शेष बैग को गाडी मे छोड़ कर,सोनप्रयाग मे ठहरने का निश्चय करके कमरों की खोज शुरू किए।

सोनप्रयाग मे मंदाकिनी बासुकी नदी का संगम है। सोनप्रयाग समुद्रतल से लगभग 1830 मीटर की ऊंचाई पर है। हमें हल्की ठण्ड लगने लगी थी, पर मजा आ रहा था। सोनप्रयाग बहुत ही अच्छी जगह है।

अब छूट मिलने पर भीड़ बढने लगी थी, शायद यहाँ वाले अभी तैयार नही थे, जिसकी झलक हमें पूरे सोनप्रयाग मे दिख रही थी। एक घंटे से अधिक समय यहाँ बिताने के बाद हमसब ने तय किया कि गौरीकुंड चलेंगे और आज कि रात वहीं बितायेंगे। फिर क्या एक गाड़ी से बात हुई वह 200 मे तैयार हो गया और हमसब बैठ गए ,रात करीब 8 बजे गौरीकुंड मे।

अब पहले कमरों की तलाश शुरू हुई। एकदम सामने ही दो कमरे मिल गए।जिनका भाडा प्रति कमरा 500 रूपये तय थे। कमरे साफसुथरे और अच्छे थे। सामान रखकर हमसब बाहर आ गए।

Also Read : Kedarnath-The Sacrosanct Pilgrimage

गौरीकुंड ,मंदाकिनी के तट पर 1980 मीटर की ऊंचाई पर बसा एक छोटा सा बाजार है। यही केदारनाथ यात्रा का बेसकैंप भी है, यहाँ से ही पैदल यात्रा शुरू होती है। मील के पत्थरों के हिसाब से केदारनाथ की कुल दूरी 16 किलोमीटर है, पर स्थानीयों के अनुसार लगभग 19 किलोमीटर का रास्ता है।

यहाँ मंदाकिनी अपने पूरे शोर के साथ बह रही थीं। यही मंदाकिनी ही थीं जिन्होंने जून, 2013 मे जलजला ला दिया था। होटल की दूसरी मंजिल पर हमारे कमरे थे, होटल वाले ने बताया कि सबकुछ डूब गया और तबाह हो गया। यदि नदी की धारा और अपने कमरों को देखें तो करीब 100 फुट से ज्यादा ऊचाई पर हम थे। ऐसी बाढ़ की कल्पना ही रोयें खडे कर देती है। इसलिए इस बाढ़ के लिए #हिमालयनसुनामी शब्द का प्रयोग किया गया।
यहाँ गौरीकुंड है, जहाँ का जल सदैव उबलता रहता है। हमने रात मे ही भ्रमण कर आये।

अब खाने के लिए रेस्टोरेंट खोजा जाने लगा, यात्रा हो नही रही थी, इसलिए 5 या 6 ही दुकानें थी।

एक दुकान पर हमने मैगी बनवाई, यहाँ पति पत्नी दुकान चलाते हैं। यहीं फिर खाने के लिए कहा गया तो इन्होंने कहा कि आलू की सब्जी, दाल और रोटी मिल जायेगी।

हमने बनाने को बोल दिया, और रात 10 बजे का समय भी दे दिया।

तब तक हमसब गौरीकुंड घूमते रहे। करीब 10 बजे सब्जी, दाल और गरमागरम रोटियाँ खाई गई। मैगी और खाना मिलाकर प्रति व्यक्ति 140 रूपये से दिया गया। मतलब 40 की मैगी और 100 रूपये खाने का।
खाकर हमसब कमरों मे आ गए, और फिर सुबह आराम से उठने का तय करके सो गए।

हम सब रात के सोये, तो सुबह ही नींद खुली, सुबह 6 बजे तक नहाने का कार्यक्रम बनने लगा, तो कमरे मे से ही, बाल्टी और जग लेकर गौरीकुंड की ओर चल दिये। गौरीकुंड का सीधा रास्ता हमारे कमरे के नीचे से जाता था, मुश्किल से 100 मीटर दूर ही है, तो तौलिया लपेट कर हमसब चल दिये। वहाँ पहुचने पर पता चला कि पानी तो उबल रहा है,मैंने कहा कि बाल्टी मे पानी लेकर रखो,जिससे वह ठण्डा हो जायेगा। मै विज्ञान का छात्र रहा हूँ, ऊपर से गणित का अध्यापक तो मुझे पता है कि जल की विशिष्ट ऊष्मा बहुत अधिक होती है, इसलिए जल देर से गर्म होता है और देर से ठण्डा।थोड़ा थोड़ा पानी ठण्ड करके नहाना शुरू किया गया। पहले अनिल नहाये ,फिर मैं, तब राम गुलाब और अन्त मे अंकुर। नहा कर हमसब कमरे मे आ गए, जहाँ कपडे पहनकर तैयार हुआ गया। उसके बाद अपने बैकपैक तैयार किया। मैंने बिस्किट, सूखे मेवे, नमकीन,टाफी और पानी की बोतल तथा एक पैण्ट शर्ट अतरिक्त रख लिया। मौसम बिलकुल साफ था, फिर भी रेनकोट रख लिया।शेष सामान बडे बैग मे रख दिया। इस तरह सब लोग तैयार होकर नीचे आ गये,वहीं कल रात वाली दुकान पर,यहाँ मैगी का आर्डर दिया गया। दुकानदार से लाकर रूम पूछने पर उसने कहा कि मुझे दे दो,मै रख लूंगा, कल आकर ले लेना वो भी निःशुल्क। हमने दो अतरिक्त बैग उसे दे दिये। मैगी खाकर चल पडे। अनिल तथा अंकुर ने 30-30 रूपये मे लाठी खरीदी। रामगुलाब बिना लाठी के चलेंगे और मेरे पास केचुआ की स्टिक है ही। सुबह लगभग 7 बजे हमसब गौरीकुंड से साथ मे चल दिये। गौरीकुंड चेकपोस्ट पर हमारे रजिस्ट्रेशन चेक किए गए, जो मैंने आनलाइन ही निकाल लिया था। इसलिए कोई दिक्कत नही थी। चेकपोस्ट के बाद घोडा पडाव पर मैंने अनिल से कहा कि यदि चलने मे दिक्कत हो तो तुम घोडा ले लो,तो उसने कहा कि “रात हो जायेगी तो चलेगा लेकिन मै अपने पैरों से ही चलकर जाऊँगा।” यह विश्वास सुनकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा, फिर मैंने सबको बताया कि “नेटवर्क की ज्यादा प्राब्लम्स नही है, जियो का नेटवर्क सब जगह मिलते जायेगा, इसलिए हमसब सम्पर्क मे रहेंगे और सब अपनी चाल से चलो,जिसे दिक्कत होगी वह फोन करेगा।” फिर रामगुलाब सबसे आगे निकल गए, मै और अंकुर साथ साथ चल रहे थे। रास्ते की खूबसूरती ऐसी कि शब्द ही नही क्या लिखूं। एक तरफ हरा भरा ऊंचा पहाड़, दूसरी तरफ गहरी घाटियां जिसमें मंदाकिनी शोर करते हुए बह रही हैं और जगह जगह गिरते अनगिनत झरने! वाह मजा आ गया। नयनों मे यह अलौकिक छटा बसाने मे मै खो गया, इसका नुकसान यह हुआ कि अंकुर मुझसे आगे निकल गए। अब मै अकेला था, ऊपर से मनमोहक प्राकृतिक सौन्दर्य, ऐसा लगता था कि ईश्वर ने बहुत ही ध्यान से और लगन से इसकी रचना की है। लेकिन मानव तो मानव है, वह कब तक प्राकृतिक नियम को मानेगा, जगह जगह फैलाये गए प्लास्टिक के कचरों से मन खिन्न भी हो जाता है। जून 2013 की तबाही, प्रकृति का निर्णय था, जिसे चाहो या न चाहो आपको मानना पडेगा, शायद हम मानव भी कठोर और ध्वंसात्मक निर्णय से ही डरते हैं, वह भी कुछ समय तक। लोगों मे इतनी बेसिक सी समझ नही कि अपने कचरे को कूडेदान मे ही डालें, जहाँ मन किया वहीं फेंक देतें हैं, यही हाल तुंगनाथ और देवरिया ताल ट्रेक पर भी मैंने देखा। दुख होता है कि इन अकथनीय सुंदरता के क्या हम ही दुश्मन हैं? फिलहाल मै यही सब सोचता आगे अपनी चाल मे चलता रहा। अनिल को चलने मे दिक्कत थी, इसलिए मैंने अनिल से फिर कहा कि घोडा ले लो,तो अनिल का जवाब वही था, बल्कि उसने कहा कि चलो आप, मै आ जाऊंगा। फिर मै अपनी सामान्य चाल से चलने लगा। जंगल चट्टी पर रामगुलाब मिल गए। फिर साथ ही साथ चलने लगे। पता चला कि अंकुर आगे निकल गये हैं। साथ चलते चलते हम भीमबली तक आ गए। यहाँ रूककर चाय पिया गया और एक पैकेट बिस्कुट को निपटाया गया।

Also Read : Top 5 Travel Credit Cards in India 2021

चाय पीकर फिर चलने लगे, रामगुलाब भाई पिछडने लगे थे, तो मै रूककर उन्हें साथ लेकर चलने लगा था। मैंने अंकुर को फोन करके कह दिया कि ऊपर जल्दी पहुंच जाओगे तो सबसे पहले कमरा बुक कर लेना, क्योंकि भीडभाड़ देखकर मुझे लग रहा था कि ऊपर पता नही अभी कमरे तैयार मिलेंगे या नही। मै रामगुलाब के साथ इसलिए भी चल रहा था कि अभी जल्द ही दो सप्ताह पहले मैंने ब्लड डोनेट किया था, जिसका असर मेरे ऊपर पड़ भी रहा था। इस तरह हम वहाँ पहुंच गए, जहाँ से आगे बढने पर दो रास्ते हो जाते हैं, एक नया और दूसरा पुराना।हमने पुराना रास्ता पकड़ लिया, कुछ दूर चलने पर लोहे का एक पुल मंदाकिनी नदी पर बना है, जिसे पार करके रास्ता दूसरे पहाड़ पर से चलने लगता है। पुल पर पहुचते ही मंदाकिनी बिलकुल करीब आ जाती हैं। पुल हिल भी रहा था। पुल पर मैंने थोड़ा समय बिताया भी। कुछ नवयुवक आ गए जिससे मेरे और मंदाकिनी के वार्तालाप मे व्यवधान पड़ गया, इसलिए मैं चल पड़ा। अब बिलकुल खडी चढाई थी। चलते चलते रामबाड़ा पर पहुंच गए, कभी यहाँ एक बडी सी बाजार और होटलों का भरमार थी, आज सिर्फ दो टेंट की छोटी सी दुकान। यहाँ एक दुकान पर रूककर मैंने माजा पिया, 15 वाला 20 रूपये मे मिला। कुछ देर के लिए यहाँ बैठ गया क्योंकि घूप बहुत तेज लग रही थी, इसलिए मै थोड़ा छाया मिलने पर बैठकर आराम करने लगा। दुकानदार ने बताया कि आज इस वर्ष की सबसे ज्यादा भीड़ है। मैंने भी महसूस किया, लेकिन घोड़े से जानों वालों की संख्या सर्वाधिक दिखाई दे रही थी। अपनी आस्था को एक बेजुबान के ऊपर लादकर लोग जा रहे थे। यहाँ रामगुलाब भी आ गए, वे भी फ्रूटी लस्सी पीकर थोड़ा सा आराम करके चल दिये। मै भी चल पड़ा और इसबार फिर अपनी चाल पकड़ ली। चढाई तो एक दम खडी चढाई है। बिलकुल माता वैष्णो देवी से भैरोनाथ की जैसी चढाई। यहाँ लगभग दो तिहाई रास्ते की चढाई एकदम जोरदार है, और मुझे ऐसी चढाई पर मजा भी खूब आता है। अब मैं फिर अकेले हो गया। अब हमारी स्थिति कुछ इस तरह सी थी पहले अंकुर, फिर मै,फिर रामगुलाब और अनिल सबसे पीछे चल रहे थे, जिनके बारे मे सटीक जानकारी नही थी कि कहाँ तक पहुंचे हैं। मै चलते चलते अंकुर को फोन करके फिर कहा कि आज भीड़ अधिक है, पहुंच कर कमरा बुक करना। लगभग 1 बजे मै बडी लिनचोली पहुंच गया, यहाँ पूरा ब्यौरा नोट हो रहा था और थर्मल स्क्रीनिंग भी। लाइन मे लग कर मैंने भी नियमानुसार थर्मल स्क्रीनिंग करवाई। फिर चलने लगा। एक बात और रामबाडा के बाद जितने भी शार्ट कट मिले मैंने सबको पकड़ लिया। बडी लिनचोली से आगे बढते ही, मुश्किल से 10 मिनट के बाद अंकुर भी मिल गए। इन्होंने बताया कि थकान ज्यादा हो रही है, जो कि स्वाभाविक भी था क्योंकि अंकुर अभी दो सप्ताह पहले तक बिमार थे, एक सप्ताह अस्पताल मे भी एडमिट थे, इसलिए थकान लगना कोई बडी बात नही थी। मेरी भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी, पर थकान ज्यादा नही लग रही थी। मै अंकुर के साथ चलने लगा, रास्ते मे दो बर्फ के छोटे और पिघलते ग्लेशियर भी मिले, हम रूकते और चलते रहे। लगभग 2 बजे केदारनाथ बेसकैंप पहुंच गये थे, फिर थोड़ी सी बारिश होने लगी तो एक टिनशेड के नीचे बैठ गए, यहाँ करीब 10 मिनट रूक कर चल दिये, तबतक बारिश बंद हो गई थी। लगभग 2.45 पर हम केदारनाथ पहुंच गए, मंदिर देखकर सारी थकान गायब हो गई, यहाँ मै लाइन मे लग गया और अंकुर को कहा कि जाओ बेंच पर बैठो। 10 मिनट लाइन मे लगने के बाद थर्मल स्क्रीनिंग हुई, फिर केदारनाथ धाम मे प्रवेश। मंदिर के सामने पहुचते ही भावविभोर हो गया। हाथ जोडकर महादेव को याद किया, और फिर कमरे की खोज शुरू किया। एक कमरा आठ सौ मे तय कर लिया, जिसमें सुबह सबके लिए गर्म पानी भी इन्क्लूड था। कमरा मंदिर से 100 मीटर ही दूर था।

kedarnath temple फिर बैग रखा,अंकुर ने बताया कि मैं बहुत थक गया हूँ, इसलिए सोऊँगा। मैंने कहा बिल्कुल आराम करो, क्योंकि शाम की 6 बजे की आरती मे शामिल होना है। Also Read : Travel to India and Discover its Hidden Gems इस समय दोपहर के 3.30 हो रहे थे,मुझे गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक पहुचने मे 8 घंटे लगे थे, अपनी सामान्य चाल से। वैसे दूरी लगभग 16 किलोमीटर(आन रिकॉर्ड) पर स्थानीयों के अनुसार लगभग 19 किलोमीटर, और गौरीकुंड लगभग 2000 मीटर, केदारनाथ की ऊंचाई लगभग 3500 मीटर। इसप्रकार एक दिन मे 16 किलोमीटर दूरी और 1500 मीटर की ऊचाई 8 घंटे मे प्राप्त करना ऊपर से थकावट हावी न होने देना, यही मेरे लिये सबसे अच्छा था। अब कमरे से बाहर आकर सबसे पहले एक प्लेट मैगी खाया जो यहाँ 50 रूपये हो गई थी। फिर घूमने लगा, लाइन मे लगकर दर्शन भी कर लिया। इस समय मंदिर के बाहर से ही दर्शन करवा रहे हैं। महादेव से क्षमा भी मांग लिया, इसके लिये। मै फिर कमरे मे गया नही, घूमने लगा। मंदिर के पीछे बर्फ से ढके पहाड़ों की चोटियां, अलग बगल बडे बडे ऊंचे हरेभरे पहाड़ और बीच मे मंदिर, आह! शायद स्वर्ग ऐसा ही हो। श्रृंगार रस की व्याख्या इस जगह के लिए कम ही है। अगर कोई मुझसे पूछे कि आप कहाँ जाना पसंद करोगे तो प्राथमिकता मे आज भी वैष्णो माता कटरा, अब दूसरे स्थान पर केदारनाथ। करीब 5 बजे रामगुलाब भी आ गए, अनिल अभी भी दूर थे। मै घूमता रहा शाम 6 बजे तक। तब अंकुर भी आराम करके आ गए थे। उन्हें ठण्ड लग रही थी, तो उन्होंने एक टोपी और दस्ताना खरीदा। फिर हमसबने जलेबी खाई, और आरती मे शामिल हो गया। महादेव की आरती बहुत ही भव्य होती है, अलौकिक आनंद आता है। सात बजे आरती खत्म हुई और मंदिर के कपाट बंद कर दिये गए। पता चला कि अब कल सुबह सात बजे खुलेंगे और दर्शन शुरू होगा। हमसब वहां घूमते रहे, ठण्ड बहुत थी, पर जाने का मन नही था। करीब 8 बजे कमरे पर पहुंचे जहाँ 150 रूपये प्रति थाली खाने के लिए तय हुआ था। उसने आकर पूछा तो मैंने बताया कि अभी मेरा एक बंदा आ रहा है जो 9 बजे के बाद आयेगा, इसलिए हमसब 9 बजे के बाद ही खायेंगे। अनिल को फोन किया तो उसने बताया कि रात मे पता नही चल रहा है कि कहाँ पर हूँ, लेकिन अब ज्यादा दूर नही है। मकानमालिक परेशान था कि ये लोग खा लें तो हम भी फुर्सत पायें, वह तीन बार खाने के लिए पूछ चुका था। हमने भी उसकी दशा देखकर कह दिया कि लाओ, लेकिन मेरा बंदा जो बचा है उसे गर्म खाना ही देना। जैसे खाना आया वैसे ही अनिल का फोन आ गया कि आ गया हूँ जहाँ चेक कर रहे हैं, मैंने कहा कि वहीं बैठो। अब कौन जाये, सब पस्त। मै ही गया क्योंकि पता नही क्यों, मुझे बहुत थकान नही थी। अनिल नीचे ही पसर कर बैठे थे, मैंने उसका बैग लिया और कहा कि महादेव को हाथ जोडकर प्रणाम करो,तथा मेरे पीछे चलो। सीढियां चढ कर कमरे पर पहुचते ही कहा कि भैया नीचे फ्लोर पर कमरा लेना था, मै मुस्कुरा कर रह गया। और हाँ मकानमालिक हम लोगों से जितनी बार मिलता उतनी बार जरूर कहता कि तुम लोगों ने फ्री मे कमरा ले लिया। हमारे बाद जो आये, उन्हें दो दो हजार मे कमरे दिये थे, अब तो लोग कमरा भी नही पा रहे थे। जब अनिल को लेने गया था कई लोग मिले जो कमरे के लिए परेशान थे। लेकिन मिल नही रहे थे। 1 अक्टूबर को उत्तराखंड मे छूट मिली और आज दो अक्टूबर है, ऊपर से 2,3,4 अक्टूबर छुट्टी। पूरा उत्तराखंड भर गया, जिसकी उम्मीद ये लोग नही किए थे। हमसब खा पीकर लेटने लगे,तो सबको पैरासिटामोल और दर्दनिवारक दवा की आवश्यकता हुई। मै कुछ दवाएं साथ लेकर चलता हूँ, अंकुर, रामगुलाब और अनिल को दवा दिया, जिसे खा कर सब सोने की तैयारी करने लगे,और तय हुआ कि सुबह नहाकर दर्शन करके नीचे ऊतर कर सोनप्रयाग से आगे कहीं रूका जायेगा। मोबाइल पर देखा तो तापमान -1℃ बता रहा था, मतलब भयानक ठण्ड थी। कुछ देर मे हमसब सो गए। सुबह मै लगभग 5 बजे उठ गया, और ब्रश करके गर्म पानी की खोज में नीचे उतरा, जहाँ गेस्टहाउस के मालिक ने बताया कि 50 रूपये प्रति बाल्टी में पानी मिलेगा, तब मैंने उसे कल शाम का वादा याद दिलाया कि “आपने तो कहा था कि गर्म पानी फ्री में मिलेगा,” यहाँ मुझे दिल्ली के सर जी याद आ गए 😂, फिर भी पानी लिया और आकर नहाया. सब जग गए थे और तैयार होने के लिए कसरतें शुरू कर चुके थे. मै तैयार होकर सबसे कहा कि ” मै मंदिर जाता हूँ, आप सब भी वहीं आकर मिलना.” मै मंदिर के लिए चल दिया, जैसे ही कमरे से निकलकर मंदिर के सामने आया तो हल्की सुबह होना शुरू हो गया था, मौसम एकदम साफ था, अभी सूर्य देवता का पता नही था, लेकिन नजारे! आह! ऐसा लगता है कि स्वर्ग आ गया हो, पीछे पर्वत शिखर पर बर्फ, अलग बगल हरे भरे पहाड़. नयनों में न बसे कुछ ऐसा ही दृश्य था. मै मंत्रमुग्ध देखता रह गया, और वहीं खड़े खड़े हाथ जोड़कर महादेव को धन्यवाद दिया. जैसे जैसे समय बीतता गया, सूर्य देव भी नजर आने लगे. सूर्य की किरणें जैसे ही बर्फ से आच्छादित चोटियों पर पडीं, चोटियाँ सोने की तरह दमकने लगीं. मै सुधबुध खोकर इन आलौकिक दृश्यों में खो गया था. ऐसा लगभग एक घंटे तक चलता रहा, फिर सात बजे मंदिर के कपाट खुल गये तब जाकर मुझे होश आया, मै अपने साथ वालों को खोजने लगा तो पता चला कि सब अभी कमरे में ही तैयार हो रहे हैं, फिर मै सबके पास आ गया, जहाँ अभी सब तैयार हो रहे थे. ठण्ड बहुत ज्यादा थे, इसलिए सन् स्क्रीम लगाने के लिए जैसे ही खोला वह बहने लगी, तब मैंने बताया कि यहाँ वायुमंडलीय दाब घट जाता है, जिसके कारण आयतन बढ़ जाता है,(बायल्स ला),इसलिए बिस्कुट, चिप्स आदि के पैकेट फूल जाते हैं. फिर सब तैयार होकर मंदिर पर आये, वहीं गेस्टहाउस पर एक पंडित जी भी मिल गये थे, उनसे पूजन भी करवाने का फिक्स हो गया था. लाइन बहुत छोटी थी, लाइन में लगे, तो 10 मिनट में ही मंदिर के बाहर से दर्शन हो गये. फिर पण्डित जी ने हम सबको बैठाकर पूजा भी कराया. हमारे जल को ले जाकर शिवलिंग पर चढ़ाया, जिसके कारण हमें भी भगवान केदारनाथ शिवलिंग के बाहर से दर्शन भी गये. भीम शिला पर भी गये. लगभग 8 बजे मै और अंकुर भैरवनाथ मंदिर जाकर दर्शन करने को कहा तो राम गुलाब और अनिल ने मना कर दिया, फिर भी मै और अंकुर चल दिए. लगभग एक किलोमीटर की खडी़ चढाई चढ़कर भैरवनाथ मंदिर पर पहुँच गए. यहाँ कोई मंदिर नही है, बल्कि एक चट्टान पर भैरवनाथ हैं. यहाँ हवा बहुत तेज लग रही थी, हमने भैरवनाथ का दर्शन किया, फिर नीचे चल पड़े. केदारनाथ मंदिर पर आकर सबसे मिल कर, सबको लेकर कमरे पर आया, यहाँ बैकपैक तैयार करके, गेस्टहाउस वाले का हिसाब किया. कमरे का 800 और 150 रूपये प्रति थाली. गर्म पानी का पैसा नही लिया, लेकिन अहसास फिर से जता दिया कि कमरा बहुत सस्ता दे दिया था. बैग लेकर मंदिर के सामने आ गए, और हाथ जोड़कर महादेव को फिर शीश वंदन किया, और महादेव से प्रार्थना किया कि फिर जल्द ही बुलाना. अब लगभग 10 बजे नीचे उतरना शुरू किया. सब साथ ही चल रहे थे, बेस कैंप से एक शार्टकट जा रहा था जिसे मेरे अतरिक्त अन्य ने ले लिया, पर मै मुख्य मार्ग पर ही गया. इस तरह मै सबसे अलग हो गया. लेकिन सबसे कह दिया कि गौरीकुण्ड में जहाँ बैग रखा गया है, वही सब पहुँच कर एक दूसरे का इन्तजार करेंगे. इस तरह मै फिर अपनी चाल से चलने लगा. बड़ी लिनचौली में एक प्लेट मैगी खाई. फिर चल पड़ा. नीचे उतरना ,चढाई से आसान होता है. ढलान थी, इसलिए चाल अपने आप ही तेज हो जा रही थी. लगभग 12 बजे मै रामबाड़ा पहुँच गया था, रूका फिर भी नहीं, मैं मंदाकिनी के पास बैठना चाहता था, इसलिए पुराना रास्ता पकड़ लिया. लेकिन वीकेंड की भीड़ नजर आने लगी थी, लगभग 40% लोग घोड़े से जा रहे थे. मै लोहे के पुल पर पहुँच कर नीचे मंदाकिनी तक जाना चाहता था, लेकिन भीड़ बहुत थी, लोग वहाँ पर नहा रहे थे और जलक्रीड़ा भी कर रहे थे, इसलिए मेरे लिए वहाँ कोई स्थान नहीं था, फिर मुलाकात का वादा करके चल दिया. फिर भीमबली पहुँच गया. भीमबली से थोड़ा आगे आते ही एक खाली बेंच पर बैठ गया और बैग में से एक पैकेट बिस्कुट निकाल कर धीरे धीरे आधे घंटे में खा लिया, पानी पीकर अन्य लोगों का इंतजार भी करने लगा, लेकिन जब किसी का पता नही चला तो मैं फिर चल पड़ा. रास्तों में मन खो जाता था, पर पैर चलते रहते थे, लेकिन मन…., मन तो वही बस जाता था. लगभग 3 बजे गौरीकुण्ड, इस तरह मै 5 घंटे में वापस का सफर तय किया था. मैंने महादेव का धन्यवाद दिया और उसी दुकान पर पहुँच कर मैगी का आर्डर दिया और पूछने पर पता चला कि कोई अभी तक नहीं आया है. 10 मिनट में मैगी तैयार होकर आ गई, मैगी खाकर खत्म ही किया था कि अंकुर भी आ गए, वे सिर्फ नीबू पानी लिए. कुछ देर आराम करके भीड़ को देखते हुए तय हुआ कि मैं और अंकुर सोनप्रयाग चल कर कमरा ढूंढते हैं, फोन करके राम गुलाब और अनिल को बताया गया. फिर मै और अंकुर एक गाड़ी पकडकर सोनप्रयाग आ गए. इसबार किराया 30-30 रूपये लगा. सोनप्रयाग पहुँच कर सबसे पहले कार के पास गए. बैग कार में रखा गया और जूते उतारकर स्लीपर पहने, जिससे पैरों को आराम भी मिल गया. अब कमरे की खोज शुरू हुई, जो कमरे गुरूवार को हजार रूपये में नही लिया था वही आज 5000 मे दे रहे थे, यदि 2000 तक देते तो भी मै ले लेता. लेकिन अब क्या? अंकुर ने कहा कि सब आ जाये तो यहाँ से आगे चलकर कमरा लेगें, क्योंकि यहाँ आज बहुत भीड़ है. अब सबका इंतजार शुरू हुआ. लगभग 6.30 बजे के बाद राम गुलाब और अनिल भी आ गए थे, फिर कार स्टार्ट हुई और चल पडे. जो चले तो चलते रहे. 8.30 बजे गुप्तकाशी पहुँच गए. वहाँ एक हजार में एक अच्छा कमरा मिल गया. कमरे में सामान रखकर हाथ मुह धोकर सामने ही रेस्टोरेंट में खाने के लिए गए, जहाँ 100 रूपये प्रति थाली के हिसाब से दाल-चावल, दो सब्जी और रोटी मिल गई. खाकर आये और सोने के पहले अगला कार्यक्रम तुंगनाथ महादेव का बनाया गया और थके होने के कारण सब लोग सो गए. मुझे रात में एक बात कचोट रही थी, कि केदारनाथ यात्रा को लोग अब धार्मिक यात्रा नहीं बल्कि पिकनिक स्पॉट बनाते जा रहे हैं, रास्तों में कचरा फैलाना, नशा करना जरूरी है क्या? फिर कोई तबाही होगी तो दोष प्रकृति का? बहुत बुरा लगता है लोगों को कचरा फैलाते देखकर, पता नही क्या बात थी कि एक जगह अनिल खाली पैकेट ऐसे ही फेक दिये तो मैंने उन्हें बुरी तरह डांट दिया, जिसका अफसोस पूरे सफर में रहा, लेकिन लोगों को जब बेसिक समझ न हो तो गुस्सा आ भी जाता है, ऊपर से मै नियमों का पक्का. प्रकृति से सदैव हाथ जोड़कर माफी मांगने वाला, यहाँ वहाँ कचरा फैलाना बिलकुल भी पसंद नहीं करता. और अन्त में सिर्फ यही कहना है कि हमारी धार्मिक यात्राओं को ट्रैक का नाम देकर पिकनिक स्पॉट मत बनाईये,हमारे पूर्वजों ने बहुत कठिनाई और त्याग से बचा कर रखा है, कृपया आप भी सहयोग करिये और अपने आने वाली पीढ़ी को एक स्वच्छ और साफ हिमालय देकर जाइये. हरहर महादेव🙏🙏 आगे ऊखीमठ,देवरिया ताल, बद्रीनाथ दर्शन, तुंगनाथ महादेव, चोपता,मक्कूबैंड, जोशीमठ के वृतांत भी समय मिलने पर लिखता रहूंगा. अभी अयोध्या,पन्ना, खजुराहो के भी वृतांत बाकी है, समय मिलने पर जल्द ही🙏

Report

What do you think?

Written by Uday Singh

Golden Temple

अमृतसर: संस्कृति,स्वाद व अध्यात्म का संगम

My Malaysia Trip – Learn how to travel for less money